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29 दिसंबर 2016

,,वरिष्ठ स्वाभिमानी पत्रकार भँवर सिंह सोलंकी ,,आज के इस बदले दौर की पत्रकारिता के हालातो ,,पत्रकार संगठनों के कार्यकलापों से बेहद दुखी है

पांच दशक से भी ज़्यादा ,,पत्रकारिता के विभिन्न,, उतार चढ़ाव का ,,अनुभव रखने वाले ,,वरिष्ठ स्वाभिमानी पत्रकार भँवर सिंह सोलंकी ,,आज के इस बदले दौर की पत्रकारिता के हालातो ,,पत्रकार संगठनों के कार्यकलापों से बेहद दुखी है ,,,उनका मानना है ,,पत्रकारिता एक उद्योग हो गयी है ,,पत्रकारिता का मिशन खत्म ,,अब सिर्फ व्यवसायीकरण और पेट पालने का ज़रिया हो जाने से ,,,क़लम से निकलने वाले अल्फ़ाज़ ,,पत्रकार की इच्छानुसार नहीं बल्कि ,,,रोज़गार देने वाले ,,सुविधाएँ देने वाले लोगो की इच्छानुसार निकलते है ,,,पत्रकारिता की इस गिरावट से नाराज़ भँवर सिंह सोलंकी को उम्मीद है ,,आज़ादी की लड़ाई में जंगजू पत्रकार सिपाहियों की आहुति बेकार नहीं जायेगी ,,पत्रकारिता एक बार फिर ज़िंदा होगी ,,और वर्तमान हालातो में ,,गरीबी ,,भ्रष्टाचार ,,चापलूसी ,,,साम्प्रदायिकता ,,आतंकवाद ,,जो भी इस देश की समस्याएं इस देश को घुन की तरह से खा रही है ,,उन समस्याओ के समाधान के लिए टारगेट करके क़लम चलेगी और देश फिर इन परेशानियों से आज़ाद ज़रूर होगा ,,,भँवर सिंह सोलंकी औद्योगिक कृषि ,,पाक्षिक समाचार पत्र के मालिक है ,,उन्होंने कोटा में जब कृषि का बोलबाला था ,,किसान भगवान था ,,,कोटा में उद्योगों की चिमनियां रोज़गार उगल रही थी ,,तब इस समाचार पत्र का शीर्षक लेकर ,,समाचार पत्र का प्रकाशन किया था ,,लेकिन कोटा की सियासत ,,कोटा के चौकीदारों के चरित्र की गिरावट ने सब मटियामेट कर दिया ,,अब यहां न तो पत्रकारिता है ,,न उद्योग है ,,न कृषि है ,,न किसान है ,,न पत्रकार संगठन है ,,हैं तो बस ,,अपना अपना हित साधने वाले ,,,पत्रकारिता में आज भी कुछ स्तम्भ ,, कुछ नोजवान है जिनके लिए उनका आशीर्वाद है ,,पत्रकारिता का वोह दोर जब यहां ,,सभी दैनिक समाचार पत्र छप कर आते थे ,,उनके संवाददाता थे तब भवंरसिंह सोलंकी की लेखनी आग उगला करती थी ,,ब्यूरोक्रेट्स हो चाहे कार्यपालिका सभी इनके आग उगलते अल्फ़ाज़ों के आगे नत मस्तक थे लेकिन अब जब समाचार पत्र ,,उनमे काम करने वाले लोग उद्योग बन गए है ,,पत्रकारिता मिशन की जगह सिर्फ पेट पालने और सुविधाएं भोगने का साधन बन गयी है ,, तब ऐसी गिरावट होने लगी है ,,कल कोटा सुचना केंद्र में भँवर सिंह सोलंकी साइटिका के दर्द और शरीर की विकलांगता के बाद भी ,,विचारों और अल्फ़ाज़ों की मज़बूती के साथ मौजूद थे ,,,कुछ लोग जो पत्रकार संगठन से जुड़े है वोह अधीस्वीकरण केम्प कोटा में नहीं लगाने पर ,,कहते देखे गए थे के जयपुर जाने में क्या बुराई है ,,वोह देखते तो उन्हें भी अफ़सोस होता ,, के उम्र के इस पड़ाव में ऐसी शख्सियत जयपुर कैसे पहुंच पाती ,,भला हो कोटा के संयुक्त निदेशक हरिओम गुर्जर ,,,जार के प्रदेशः अध्यक्ष नीरज गुप्ता ,,धीरज गुप्ता और दूसरे साथियो का जिन्होंने अपने प्रयासों से अधिस्वीकरण केम्प को कोटा में लगवाने की कोशिशें की और कामयाबी हांसिल की ,,,,भँवर सिंह सोलंकी कोटा प्रेस क्लब के फाउंडर सदस्य है ,,,पत्रकारिता के विभिन्न चरणों में प्राप्त उनके अनुभवो का लाभ कोई लेना मुनासिब नहीं समझता इसलिए वोह खामोश रहते है ,,वर्तमान हालातो में पत्रकारिता के नाम पर सियासत से भी वोह दुखी है ,,बुज़ुर्ग अनुभवी पत्रकार लोगो के प्रति उपेक्षित रवय्ये से भी वोह दुखी है ,सतत्तर वर्ष के पत्रकारिता क्षेत्र के यह शेर ,,,लोगो को पत्रकारिता क्षेत्र में बलिदान देने की सीख देते है ,,वोह कहते है सब्र करो ,,गुस्से से बचो ,,आपसी विवादों को टालो ,,,पत्रकारिता संगठनों से वोह कहते है ,,प्यार ,,सद्भाव का माहौल बनाये ,,,पत्रकार संगठन पत्रकारों को नयी नयी बदलती तकनीक सिखाने की कार्यशालाएं आयोजित करे ,,संगठन पत्रकारिता के गुरु और संरक्षक बनकर काम करे ,,,,वोह कहते है हमारा किया ,, कप्तान दुर्गा प्रसाद चौधरी चले गए ,,कुलिश जी चले गए ,,भँवर शर्मा अटल चले गए ,,एक एक करके वरिष्ठ लोग जा रहे है ,,नए पत्रकार अगर इस बची हुई धरोहर का कोई लाभ ले सके ,,उनके अनुभवो से कुछ सीख सके तो उन्हें ख़ुशी होगी ,,,,,,मेने कल उनसे वार्ता के दौरान एक सेल्फी भी ली उनका आशीर्वाद भी लिया ,,उनके अनुभवो का लाभ भी लिया ,,,,,,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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