तुम्हे ही सोचता हूँ
तुम्हे ही लिखता हूँ ,,
फिर भी देखो
रोज़ यूँ ही बेवजह
कुछ दलालों की
गालियां सुनता हूँ
ऐ मेरे देश के खामोश लोगो
तुम्हे ही जगाता हूँ
तुम्हे ही उठाता हूँ
लेकिन
तुम हो के ,,
कुछ गिनती के लोगो से
थोड़े से फायदे के लिए
ठगे जाते हो ,,
मेरे इस देश को यूँ ही
खून के आंसू रुलाते हो ,,अख्तर
तुम्हे ही लिखता हूँ ,,
फिर भी देखो
रोज़ यूँ ही बेवजह
कुछ दलालों की
गालियां सुनता हूँ
ऐ मेरे देश के खामोश लोगो
तुम्हे ही जगाता हूँ
तुम्हे ही उठाता हूँ
लेकिन
तुम हो के ,,
कुछ गिनती के लोगो से
थोड़े से फायदे के लिए
ठगे जाते हो ,,
मेरे इस देश को यूँ ही
खून के आंसू रुलाते हो ,,अख्तर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)