तुम कमसिन नाज़ुक सी ,,
पंखुड़ी जैसे होंठ तुम्हारे ,,
झील सी आँखे तुम्हारी ,,
उमड़ते बादलो सी ज़ुल्फे तुम्हारी ,,
चंचल शोख अदाएं ,,
यह नाज़ुक ,,कांच सा बदन तुम्हारा ,
उफ़ छूने को नहीं
सिर्फ देखते रहने को जी चाहता है ,अख्तर
पंखुड़ी जैसे होंठ तुम्हारे ,,
झील सी आँखे तुम्हारी ,,
उमड़ते बादलो सी ज़ुल्फे तुम्हारी ,,
चंचल शोख अदाएं ,,
यह नाज़ुक ,,कांच सा बदन तुम्हारा ,
उफ़ छूने को नहीं
सिर्फ देखते रहने को जी चाहता है ,अख्तर
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